Rishabh tomar

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अपनी व्यथा

जनाज़े से पहले भी कन्धों की ज़रूरत होती है

कंधा देना बड़ा ही पुण्य का कार्य माना जाता है। अगर किसी को कंधा न मिले तो सुना है इंसान मरकर भी भटकता रहता है। वैसे जनाज़े में ही कंधे की ज़रूरत नही पड़ती। जब एक भाई करता है अपनी बहन को विदा, जल्दी जल्दी हँसता हँसाता दिखता है भागता हुआ तब होती है ज़रूरत कंधे की, एक पिता करके विदाई बोलता है बस अब हो गया मुक्त तब होती है ज़रूरत कंधे की, एक किसान पूरी साल एड़ियां रगड़ उगाता है फसल औऱ पकने पर होती है बारिश तब जरूरत होती है कंधे की, एक व्यक्ति सामने वाले के कहे बिना लुटा देता है अपना सब कुछ औऱ बदले में मिलती है उपेक्षा तब होती है ज़रूरत कंधे की, जब पूरी जान लगाकर भी एक लड़का असफल हो जाता है तब जरूरत होती है एक कंधे की, जब मां का लाडला सारे सपनों को मारकर सारी आजादी को लहूलुहान कर करता है जॉब तब जरूरत होती है एक कंधे की। मगर इस मामले में दुनियाँ ने बड़ा ही पक्षपात किया है पुरुषों के साथ। वैसे तो नर नारी एक ही सिक्के के दो पहेलु है मगर नारी को अक्सर मिलते रहे है कंधे औऱ पुरुष के साथ होता रहा है हमेशा अन्याय बल्कि उनसे तो कहा गया है कि वो मर्द है, उनको ज़रूरत नही है किसी की, वो सब सँभाल लेंगे, औऱ इस तरह पुरुषों को पाषाण बनने पर मजबूर कर दिया है। और पुरुष पुरुष नही पथ्थर हो गये है, लाश हो गये है, भावनाओं से बंजर हो गये है। मगर फिर भी  ये बात नही बदली जा सकती कि जनाज़े के पहले भी बहुत से कन्धों की जरूरत होती है पुरुषों को .....

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5 Comments

अदिति झा

07-May-2023 07:43 PM

Nice 👍🏼

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Renu

06-May-2023 08:57 PM

👍👍

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Rishabh tomar

06-May-2023 11:00 PM

बहुत बहुत धन्यवाद रेणु जी

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Reena yadav

06-May-2023 05:16 PM

बहुत ही सुन्दर 👍

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Rishabh tomar

06-May-2023 11:00 PM

शुक्रिया रीना यादव जी

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